सूक्ष्म शिक्षण क्या है?
हम सभी का स्कूल या कॉलेज में कोई न कोई प्रिय अध्यापक जरूर होगा| जिनके द्वारा पढ़ायी गई चीज बड़ी आसानी से हमारी समझ में आ जाती थी| क्या अपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? क्यों कुछ लोगों का पढ़ने का तरीका इतना प्रभावी होता है? दरअसल शिक्षण कार्य में दक्षता प्रशिक्षण विधियों के रोज अभ्यास से आती है| सूक्षम शिक्षण, शिक्षण कार्यों में समझ पैदा करने की नवीन विधियों में से एक है|
सूक्ष्म शिक्षण से तात्पर्य है शिक्षण का लघु रूप| यह शिक्षण की कठिन प्रक्रिया को छोटे-छोटे सरल भागो में छत्रों के सामने प्रस्तुत करने की रुचिपूर्ण प्रक्रिया है| सूक्ष्म शिक्षण के माध्यम से ही प्रशिक्षु शिक्षण कार्य की बारीकियों से अवगत होतें है|
सूक्ष्म शिक्षण सिखाने की छोटी प्रक्रिया है जिसमे कक्षा के छोटे से आकर व समय में थोड़ी विषयवस्तु को अच्छे से सिखाया जाता है|
सूक्ष्म शिक्षण की परिभाषा
एलन ने अपनी पुस्तक माइक्रोटीचिंग्स में लिखा है-
सूक्ष्म शिक्षण सभी प्रकार की शिक्षण सम्बन्धी क्रियाओं को छोटे-छोटे भागों में विभक्त करना है|
क्लिफ्ट के अनुसार
सूक्ष्म शिक्षण अध्यापक प्रशिक्षण की वह विधि है जिसमे शिक्षण की स्थितियों को सरल किया जाता है| और शिक्षण व्यवहार को किसी एक विशिष्ट कौशल के अभ्यास से जोड़ दिया जाता है| यह अभ्यास शिक्षण की अवधि और कक्षा के आकार के छोटे स्वरुप पर होता है|
- सूक्ष्म शिक्षण से कक्षा का आकर सीमित होता है|
- पाठ्यवस्तु सीमित होती है|
- पढ़ाने की अवधि १० मिनट होती है|
- छात्रों या प्रशिक्षु की संख्या 5 से 10 होती है|
- एक शिक्षण कौशल पर ही बल दिया जाता है|
एल डब्लू एलन को सूक्षम शिक्षण का जन्मदाता माना जाता है|
सूक्ष्म शिक्षण की आवश्यकता और महत्त्व
सूक्ष्म शिक्षण की प्रक्रिया द्वारा छात्रों को वास्तविक शिक्षण के लिए तैयार किया जाता है| परंपरागत शिक्षण को सरल बनाकर प्रशिक्षुओं को समझाया जाता है| इसकी आवश्यकता इस बात से समझी जा सकती है कि यह सीमित समय और संशाधनों में शिक्षण कार्य का अनुभव देता है| और एक-एक कौशल को क्रमशः सीखते हुए शिक्षण कला में दक्ष बनाता है|
इस शिक्षण द्वारा सबसे बड़ा लाभ यह है कि प्रशिक्षु पढ़ाने के बाद स्वयं ही पर्वेक्षकों की सलाह पर, अपने शिक्षण कार्य का मूल्याङ्कन करते है| और जहा सुधार की गुंजाईश होती है वहां स सुधार करते हैं|
सूक्ष्म शिक्षण की मूल बात यह है कि शिक्षण जैसी व्यापक परिकल्पना या concept को छोटे-छोटे भागों में समझाया जाये, धीरे-धीरे सम्पूर्णता की ओर बढ़ा जाए, जिससे शिक्षण कार्य प्रभावी हो और उसमे गुणवत्ता हो|
सूक्ष्म शिक्षण के सोपान या सूक्ष्म शिक्षण चक्र
चित्र के माध्यम से सूक्ष्म शिक्षण को अच्छी तरह से समझा जा सकता है-
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सूक्ष्म शिक्षण चक्र
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सूक्ष्म शिक्षण को हम इस उदाहरण से समझते हैं| मान लीजिये प्रशिक्षु को प्रश्नोत्तर कौशल सीखना है उसपर उसने पाठ्यवस्तु का चयन किया, पाठ्य योजना तैयार की, उसको पढ़ाया| उसमे अच्छाइयों एवं कमियों को जाना|
सूक्ष्म शिक्षण के सोपान
सूक्ष्म शिक्षण के विभिन्न पद या सोपान निम्न हैं-
पाठ योजना
सबसे पहले कक्षा का निर्धारण होता है| विषयवस्तु तथा कौशल का चयन किया जाता है| कक्षा में छात्रों की संख्या निश्चित की जाती है| फिर पाठ योजना तैयार की जाती है|
शिक्षण
पाठ योजना के अनुसार निर्धारित कक्षा में शिक्षण कार्य किया जाता है| पर्यवेक्षक तथा साथी छात्राध्यापक पढ़ाने वाले छात्र की आलोचना करते है| प्रशिक्षु स्वयं अपनी गलतियां देखता है| निर्देशक की सलाह पर सुधार करता है| और यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक वांछित सुधार न हो जाए|
प्रतिपुष्टि या पश्चपोषण
शिक्षण के बाद निर्देशक तथा साथी प्रशिक्षुओं में विचार-विमर्श होता है| तथा गलतियों का विश्लेषण किया जाता है|
पुनर्नियोजन
प्रशिक्षु अपने व्यवहार को अच्छा बनाने हेतु निर्देशक के सुझावों के आधार पर पाठ को पुनः नियोजन करता है|
पुनः शिक्षण
पुनः शिक्षण के लिए नए छात्रों को न लाकर पाठ्य सामग्री बदलना चाहिए| उस नए विषय पर पाठ्य योजना बनाकर शिक्षण कार्य का अभ्यास किया जाता है|
पुनः प्रतिपुष्टि
पुनः शिक्षण के बाद निरीक्षक फिर शिक्षण में अपनी राय रखता है| जिसको प्रशिक्षु उत्तरोत्तर शिक्षण में सुधारता जाता है|
सूक्ष्म शिक्षण के मुख्य सिद्धांत
अभ्यास का सिद्धांत
सूक्ष्म शिक्षण में छोटी-छोटी इकाई में अभ्यास कराया जाता है ताकि प्रशिक्षु कक्षागत समस्याओं से अवगत हो सके|
निरंतरता का सिद्धांत
यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक शिक्षण कौशल में परिपक्वता नहीं आ जाती|
अंत में यह निष्कर्ष निकलता है की सूक्ष्म शिक्षण प्रशिक्षण की क्रमबद्ध एवं तार्किक पद्धति है| इसके प्रयोग से शिक्षण कला में दक्षता पाई जा सकती है|